इस पोस्ट के जरिये आप बहराइच में घूमने की जगह (Bahraich me ghumne ki jagah), बहराइच के बेस्ट प्लेसेस(best places to visit in bahraich), और बहराइच के प्रमुख मंदिर (bahraich ke pramukh mandir) के बारें में जानेंगे। द्वापर युग में ब्रह्मा की तपोभूमि रही ब्रह्माइच अब बहराइच कहलाती है।
यह लखनऊ से लगभग 128 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसकी सीमा नेपाल देश से सटी हुई है। घाघरा नदी को बहराइच ज़िले की मुख्य नदी के रूप में जाना जाता है। घाघरा नदी के किनारे बैठकर आपको शांतिभरा समय बिताना बहुत मनोरम लगेगा। बहराइच गिरवा नदी के नजदीक कर्तनिया घाट है जहां पर कई दुर्लभ पक्षी आपको देखने को मिलेंगे।
जब जनरल आउटम ने 7 फरवरी, 1856 को अवध पर ब्रिटिश कंपनी का शासन घोषित किया था। उस समय बहराइच को एक विभाजन का केंद्र बनाया गया था, और श्री विंगफील्ड को इसके आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था।
ब्रिटिश शासन के दौरान, साइंस कमिशन का विरोध करने के लिए फ़रवरी 1920 में पूरी हड़ताल को नानपारा, जरवल और बहराइच टाउन में बुलाया गया था।
Table of Contents
- 1 राजकीय इंदिरा उद्यान | Rajkiy Indira Udyan Bahraich
- 2 ककहरा इको पर्यटन बहराइच | Kakhara Eco Tourism Bahraich
- 3 श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर |Shri Siddhanath Mahadev Temple Bahraich
- 4 मरी माता मंदिर बहराइच | Mari mata mandir bahraich
- 5 राजा की कोठी | Raja ki kothi bahraich
- 6 संघारण महाकाली मंदिर
- 7 कर्तनियाघाट वन्यजीव अभ्यारण बहराइच | Katarniaghat Wildlife Sanctuary Bahraich
- 8 दरगाह शरीफ़ बहराइच | dargah sharif bahraich
- 9 महाराजा सुहेलदेव मेमोरियल गेट | Maharaja suheldev memorial gate
- 10 चहलारी घाट
- 11 बहराइच कैसे पहुंचे ?
- 12 कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (FAQ)
राजकीय इंदिरा उद्यान | Rajkiy Indira Udyan Bahraich
यह बहराइच में कपूरथला, ब्रह्मणीपुरा में स्थित हैं। अगर बहराइच जिले में कोई शांति की जगह ढूंढ रहें हैं तो यह जगह आपके लिए बहुत उपयोगी रहेगी। और यह बहराइच में घूमने की जगहों (Bahraich me ghumne ki jagah) में से एक है। ऐसे में अगर मौसम अच्छा है तो आप यहां आकर हरे भरे फूल-पौधों को देखकर प्रकृति का आनंद ले सकते हैं। जो की मन को बहुत सुकून देते हैं।
शहर का इकलौता पार्क इंदिरा उद्यान बहराइच शहर के हर आम व खास का पसंदीदा पिकनिक स्पाट है। यहां सुबह-शाम शहरवासी घूमने के लिए आते हैं। इनकी संख्या प्रतिदिन एक हजार से अधिक होती है, इनमें युवा, वृद्ध, महिलाएं एवं बच्चे शामिल होते हैं। यहां की सुंदरता बहुत ही लुभावनी और मनमोहक हैं।
ककहरा इको पर्यटन बहराइच | Kakhara Eco Tourism Bahraich
यह बहराइच मुख्य शहर से 70 किलोमीटर की दूरी पर नेपाल सीमा से सटे बलई गांव मे स्थित है। बहराइच के बेस्ट प्लेसेस में से ककहरा इको पर्यटन एक मुख्य पर्यटन स्थल (best places to visit in bahraich) है। यहां पर आपको हरे भरे पेड़ पौधे और खूबसूरत जंगल देखने को मिलता है। यहाँ आप रोड के जरिये पहुँच सकते हैं।
यहां पर पेड़ पौधों के बारे में भी आपको जानकारी दी जाती है। यह बहराइच का एक पिकनिक स्पॉट भी है। आप यहां पर दोस्तों, सगे-संबंधियों के साथ अच्छा टाइम बिता सकते हैं।
श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर |Shri Siddhanath Mahadev Temple Bahraich
बहराइच के प्रमुख मंदिर (bahraich ke pramukh mandir) में से श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर मुख्य मंदिर माना जाता है। जिला बहराइच में श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर भगवान शंकर जी का मंदिर है। सिद्धनाथ मंदिर के महामंडलेश्वर स्वामी रवि गिरी महाराज ने बताया कि इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग की स्थापना अज्ञातवास के समय धर्मराज युधिष्ठिर ने की थी। इस स्थल पर महाभारत काल में पांचों पांडव भगवान शिव की पूजा अर्चना करते थे। जहां आज लोगों की असीम मान्यताएं पूरी होती हैं।
महंत रवि गिरी जी ने बताया कि सिद्धनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग की पूजा अर्चना करने वाले भक्त की सारी मान्यताएं पूरी होती हैं जिससे यहां लोगों की असीम आस्था जुड़ी हुई है। सावन के सोमवार व महाशिवरात्रि के दिन यहां जलाभिषेक करने के लिए भारी तादात में कावरियों का सैलाब उमड़ता है। यहां मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग के दर्शन करने को मिलते हैं।
मरी माता मंदिर बहराइच | Mari mata mandir bahraich
मरी माता बहराइच के प्रमुख मंदिरो में से एक है। और यह मंदिर बहराइच में स्थित बहुत ही प्राचीन मंदिर है। मरी माता बहराइच लखनऊ हाईवे सड़क पर सरयू नदी के किनारे पर है। आपको यहां पर आकर बहुत अच्छा लगेगा। लोगों की इस मंदिर के प्रति मान्यता है कि मरी माता मंदिर के दर्शन करने से उनकी इच्छाएं पूरी होती है।
मरी माता मंदिर बहराइच का इतिहास | mari mata mandir bahraich ka history in hindi
लोगों का मानना है कि सरयू तट से लखनऊ-बहराइच मुख्य मार्ग को जाने वाले रास्ते पर पहले काफी घना जंगल हुआ करता था। यहीं पर दो साधु आकर रुके थे। उन दोनों साधुओं ने नीम के पेड़ के तले विश्राम किया। उसी समय उनको एक सपना आया की पेड़ की जड़ के पास मां दुर्गा की पिंडी मिट्टी में दबी हुई है।
साधु सोकर उठे तो आसपास के गांव के लोगों को बुलवाकर मिट्टी हटवाई गई। मिट्टी के हटते ही अति प्राचीन पिंडी मिली। साफ-सफाई कर नीम के तले पिंडी की स्थापना कर पूजा-अर्चना शुरू की गई। और जब मरी माता लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण करने लगी तो फिर भक्तो ने मिलकर मन्दिर बनवा दिया। इस भव्य मंदिर में दूर-दूर से लोग मरी माता के दर्शन करने आते हैं। यहां पर आपको देवों के देव महादेव का और भगवान हनुमान का मंदिर भी दर्शन करने के लिए मिलेगा।
राजा की कोठी | Raja ki kothi bahraich
राजा की कोठी बहराइच के मुख्य पर्यटन स्थलों में कुछ साल पहले शामिल थी। आज से लगभग 150 साल पहले नानपारा के मुहल्ला किला में राजा जंगबहादुर ने रियासती इमामबाड़े का निर्माण मुहर्रम के लिए करवाया था। जामा मस्जिद के पास ताजिया रखने के लिए चबूतरे के रूप में बनवाया गया था। जहां मुहर्रम के शुरू होते ही आठ रबीउल अव्वल तक मजलिसों का दौर चलता था।
लंगरसानी और शीरनी बांटी जाती थी। लखनऊ, जौनपुर, दिल्ली सहित तमाम स्थानों से मजलिसें पढ़ने और मरसिया सुनाने के लिए लोगों को बुलाया जाता था। और अब ये कोठी धीरे-धीरे खंडहर होती जा रही है। इस कोठी को राजा शहादत अली ने बनवाया था। लेकिन अच्छे से रख-रखाव न हो पाने की वजह से ये जर्जर होती जा रही है।
संघारण महाकाली मंदिर
बहराइच में संघारण महाकाली मंदिर घूमने की फेमस जगहों (best places to visit in bahraich) में शामिल है। काली माता का ये मंदिर बहराइच में दीघही चौराहे के डिगिहा तिराहा के निकट स्थित मां संहारणी देवी मंदिर की स्थापना ग्यारह सौ साल पहले हुई थी। यहां महाराजा सुहेलदेव ने दुश्मनों की सेना पर विजय प्राप्त करने के लिए मां काली की उपासना की थी।
तब से मंदिर भक्तों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। भक्तों में आस्था है कि मां काली की पूजा से रुके हुए काम पूरे हो जाते हैं। उनके जीवन में आने वाली समस्त बाधाओं को मां चंडी समाप्त कर देती है। इसी आस्था के साथ भक्त नवरात्रि के सभी नौ दिनों तक मंदिर में सुबह शाम पूजन अर्चन करते हैं। दुर्गा अष्टमी के दिन मंदिर में विशेष पूजन और हवन होता है। नवरात्रि में मां काली के प्राचीन मंदिर में बहुत ज्यादा भीड़ लगती है।
कर्तनियाघाट वन्यजीव अभ्यारण बहराइच | Katarniaghat Wildlife Sanctuary Bahraich
कर्तनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य बहराइच में घूमने की बेस्ट जगहों (Bahraich me ghumne ki jagah) में से एक है। यह जगह भारत और नेपाल के बॉर्डर पर स्थित है। यहां हरियाली से घिरा हुआ माहौल आपको बहुत सुंदर लगेगा। कर्तनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य में आपको गिरवा नदी का भव्य मनोरम दृश्य देखने को मिलता है। इसके साथ ही यहां पर आप बोट राइड भी कर सकते हैं। यहां पर आपको कई सारे खतरनाक जानवर भी दिख जाते हैं जैसे- मगरमच्छ घड़ियाल। इसलिए यहां काफी सतर्कता से टहलना चाहिए।
कर्तनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य बहराइच में रहने की सुविधा –
कर्तनियाघाट वन्यजीव अभयारण्य में आकर आप ठहर सकते हैं। और इसके साथ ही अभयारण्य में आपको हट में रहने की सुविधा भी मिलती है। और यहां पर एक ट्रीहाउस भी बनाया गया है। जो की यहां पर ठहरने के काम आता है।
दरगाह शरीफ़ बहराइच | dargah sharif bahraich
हज़रत ग़ाज़ी सय्यद सलार मसूद, एक प्रसिद्ध ग्यारहवीं सदी के इस्लामी वरिष्ठ संत और सैनिक थे। यह दरगाह उन्ही के लिए बनवायी गयी थी। यह दरगाह मुस्लिम और हिन्दू दोनों के लिए आदर का स्थान है। इसे फ़िरोज़ शाह तुग़लक ने बनवाया था। माना जाता है कि इस दरगाह के पानी में स्नान करने से लोग सभी त्वचा बीमारियों से मुक्त हो जाते हैं। इस दरगाह पर वार्षिक उर्स मेले को देश के दूर-दूर स्थानों से आने वाले हजारों लोग भाग लेते हैं।
दरगाह शरीफ़ बहराइच कैसे पहुँचे ?
दरगाह शरीफ़ बहराइच लखनऊ से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां के लिए कोई डायरेक्ट ट्रैन नहीं है आप यहां बस और अपनी निजी सवारी से जा सकते हैं।
महाराजा सुहेलदेव मेमोरियल गेट | Maharaja suheldev memorial gate
महाराजा सुहेलदेव मेमोरियल गेट बहराइच के टूरिस्ट प्लेसेस में एक ख़ास जगह है क्योंकि यहाँ पर आपको महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा देखने को मिलती है।
महाराजा सुहेलदेव एक महान राजा थे जो की श्रावस्ती जिले पर राज करते थे, जिन्हें 1034 में बहराइच में गाजनवीद सेनापति गाज़ी मियां को हराने और मारने के लिए प्रसिद्ध किया गया।
उन्हें मिरात-ए-मासूदी नामक 17वीं सदी की पर्शियन भाषा की ऐतिहासिक रोमांस में उल्लिखित किया गया है।
16 फरवरी 2021 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से उत्तर प्रदेश के बहराइच में महाराजा सुहेलदेव स्मारक की नींव रखी, जिसमें महाराजा सुहेलदेव की एकवर्षीय मूर्ति की स्थापना की गयी । जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के , मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे। उन्होंने इस दिन को सुहेलदेव के जन्मदिन के रूप में मनाया और एक आधिकृत नोट जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा, राजा सुहेलदेव ने 1987 में बहराइच को गाज़नवीद सेनापति गाज़ी सैय्यद सलार मसूद से हार कर खो दिया था, जिसने चित्तौड़ा झील के किनारे पर लड़ाई लड़ी, हराई और मार दिया।
चहलारी घाट
वैसे तो यह कोई पिकनिक स्पॉट नहीं है लेकिन यह बहराइच की फेमस जगह (bahraich ki famous jagah) कही जाती है। तो अगर आप बहराइच में घूमने का प्लान बना रहे हैं तो निश्चित रूप से आपको यहां घूमना चाहिए क्योंकि यह उत्तर प्रदेश में नदी पर बना सबसे लंबा सड़क पुल है।
चहलारी घाट पुल जिसे चहलारी घाट सेतु भी कहा जाता है। यह पुल घाघरा नदी पर बना है जो पूर्व में स्थित बहराईच को उत्तर प्रदेश के पश्चिम में स्थित सीतापुर से जोड़ता है । चहलारी घाट सेतु की लंबाई 3,260 मीटर (10,700 फीट) है। और यह भारत का दसवां सबसे लंबा नदी पुल है।
यह प्रमुख नेता मुख्तार अनीस के प्रयासों का परिणाम है जिनको “गांजर के गांधी” के नाम से जाना जाता है।
बहराइच कैसे पहुंचे ?
हवाई जहाज के द्वारा
बहराइच का सबसे नियरेस्ट हवाईअड्डा, अमौसी हवाई अड्डा लखनऊ है जो लगभग 145 किलोमीटर है.
ट्रैन के द्वारा
लखनऊ से बहराइच के लिए कोई डायरेक्ट ट्रैन नहीं है लेकिन आप लखनऊ से गोण्डा होते हुए बहराइच पहुँच सकते हैं। जो लगभग 160 किलोमीटर है।
बस के द्वारा
बस के द्वारा आप बहराइच आसानी से पहुँच सकते हैं। बस आपको कैसरबाग़ बस स्टॉप लखनऊ से मिल जाएगी। जो लगभग 130 किलोमीटर है।
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (FAQ)
बहराइच में क्या मशहूर है?
बहराइच में श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर सबसे प्रसिद्ध मंदिर है।
बहराइच में कौन सी नदी है?
बहराइच सरयू नदी के तट बसा हुआ है।
बहराइच को बहराइच क्यों कहा जाता है?
कहा जाता है कि ब्रह्मा जी द्वारा इस वन-आच्छादित क्षेत्र को ऋषियों और साधुओं की पूजा स्थली के लिए विकसित किया था। इसलिए इस जगह को “बहराइच” के नाम से जाना जाता है।
कुछ अन्य इतिहासकारों की मानें तो मध्यकाल में यह स्थान “भर” राजवंश की राजधानी थी। इसलिए इस स्थान को “भराइच” कहा जाता था। जिसे बाद में धीरे धीरे “बहराइच” के नाम से जाना जाने लगा।